हौज़ा न्यूज़ एजेंसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, क़ुम के इमाम जुमा और हज़रत मासूमा (स) की दरगाह के मुतवल्ली आयतुल्लाह सय्यद मोहम्मद सईदी ने अपने शुक्रवार के ख़ुत्बे में कहा कि जो लोग अमेरिका के साथ संबंध चाहते हैं, उन्हें पता होना चाहिए कि परमाणु कार्यक्रम और मानवाधिकार केवल बहाने हैं। क़ुरान के अनुसार, जब तक हम उनके धर्म और तरीक़े के अधीन नहीं हो जाते, वे हमें कभी स्वीकार नहीं करेंगे।।
उन्होंने कहा कि आज इस्लाम के असली दुश्मन ज़ायोनी और उनके कठपुतली हैं जो "मुहम्मदी इस्लाम" के ख़िलाफ़ हैं। इसलिए, अमेरिका समर्थक समूहों को सावधान रहना चाहिए और इस्लामी सिद्धांतों से विचलित नहीं होना चाहिए।
आयतुल्लाह सईदी ने आगे कहा कि क़ुरान और वंश को अलग करने की सबसे बड़ी साज़िश बनी उमय्या ने की थी, जिसके प्रभाव आज भी आईएसआईएस जैसे समूहों के रूप में मौजूद हैं। इमाम हसन मुज्तबा (अ) ने इस तथ्य की ओर इशारा करते हुए कहा कि अगर बनी उमय्या का एक भी कमज़ोर बूढ़ा आदमी बच गया, तो वह अल्लाह के दीन को भ्रष्ट करने की कोशिश करेगा।
उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि इस्लामी उम्माह को क़ुरान और अहले बैत (अ) की शिक्षाओं के इर्द-गिर्द इकट्ठा होना चाहिए, क्योंकि इमाम काबा की तरह धुरी हैं और लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वे उनके इर्द-गिर्द एकजुट हों।
अपने जुमा के ख़ुत्बे में, आयतुल्लाह सईदी ने नमाज़ को तक़वा का प्रतीक बताया और कहा कि अगर तक़वा न हो, तो नमाज़ और इबादत के अन्य कार्य अपनी वास्तविकता खो देते हैं। उन्होंने क़ुरआन की आयतों की रोशनी में स्पष्ट किया कि ईश्वरीय परीक्षा ईश्वर की सुन्नत है और मोमिन को अपनी कमज़ोरियों को पहचानकर उन पर विजय पाने का प्रयास करना चाहिए।
क़ुम के इमाम जुमा ने भी मस्जिद दिवस के अवसर पर कहा कि मस्जिद केवल इबादत के लिए ही नहीं, बल्कि इस्लामी उम्माह की एकता और मानवता की सेवा का केंद्र भी है।
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